Saturday, April 26, 2008

उगते हुए सूरज को आखिरी बार कब देखा था

फूल तो आप को भी अचछे लगते होंगे। गेंदा गुलाब जूही चंपा चमेली कमल ---दिमाग पर जोर डालें तो शायद कुछ नाम और याद आ जाएं। इनमें से किसी फूल को डाली पर झूमते हुए आखिरी बार कब देखा था आपने।फूलों को छोड़िए चिड़ियों की बातें करते हैं- कौवा कबूतर गौरैया बाज तोता मैना थोड़ी कोशिश करें तो कुछ नाम और याद आ सकते हैं पर यह तो बताइए कि इनमें से किसी पंछी की आवाज आखिरी बार कब सुनी थी।अब यह मत कह दीजिएगा कि पेड़ों को पहचानना मुशिकल हो सकता है पर उनके नाम से तो परिचित ही हैं। चलिए देखते हैं कितने पेड़ों के नाम ले सकते हैं आप---- आम जामुन पीपल महुआ पीपल बरगद कटहल वाकई बहुत से नाम जानते हैं आप पर यह तो बताइए किसी पेड़ की छांव में बैठ कर आखिरी बार कब सुसताए थे आप।जरा जोर डालिए दिमाग पर और बताइएउगते सूरज को आखिरी बार कब देखा थारात में चांद देखने की फुरसत कब मिली थी आपकोधरती को कब छुआ था आखिरी बारनदी या पोखर में कब लगाई थी डुबकी
धरती से खतम होते जा रहे हैं पेड पौधे नदी तालाब यह कभी सोचा ----तब तो कम से कम एक पेड़ जरूर लगाया होगा आपने

Sunday, April 6, 2008

ढलती शाम चाय की चुस्कियां और अरुण आदित्य की कविताएं

कल एक बार फिर नील पदम-१ में दोस्तो का जमावड़ा हुआ। एक सप्ताह पहले ही सबसे खुद को खाली रखने का आग्रह कर चुका था। पर क्या करें महानगर की विडंबना है कि छुटटी में भी छुटटी मुश्किल से ही मिल पाती है। इसलिए हमेशा की तरह बहुत से लोगों ने आखिरी समय में माफी मांग ली। पर अपनी वैशाली में कविता लिखने और सुनने वालों की कमी नहीं सो कविता के कुछ रसिक जुट ही गए। ढलती शाम में चाय की चुस्कयों के साथ युवा कवि अरुण आदित्य ने अपनी नयी पुरानी ढेर सारी कविताएं सुनायीं। जन विकल्प में प्रकाशित अरुण जी की इन कविताओं का रसास्वादन आप भी करें-

मैंने तो बस इतना पूछा था

अंधकूप के अंधियारे में
दोपहर शाम कहां
यूकेलिप्टस के जंगल में
महुआ जामुन आम कहां
चाहे जितना सेज सजाओ
मेरे हिस्से काम कहां
राजा हो तुम राज करो जी
हमको है आराम कहां
कौन सिरफिरा पूछ रहा है
भइया नंदीगाम कहां
मैंने तो बस इतना पूछा
छांव कहां है घाम कहां
तुम्हें लगा मैं पूछ रहा हूं
राम कहां और वाम कहां

बापू क्यों शरमाए हैं
बापू तेरी जन्मभूमि पर
राम-राज हम लाए हैं
फिर भी तुम खुश नहीं
तुम्हारे माथे पर रेखाएं हैं
हिटलर भी था चुना हुआ
हम भी चुनकर आए हैं
हमने यह सच बोल दिया तो
बापू क्यों शरमाए हैं
ना कोई मरता ना ही
कोई सकता मार
बापू कैसे भूल गए तुम
गीता का यह सार
अगर याद है तो फिर काहे
चेहरा यूं लटकाए हैं
क्यों गिनते हैं मेरे खाते
में कितनी हत्याएं हैं