Monday, August 11, 2008

बनाते हैं चैनल वाले

कुछ दिन हुए सैलून में कटिंग करा रहा था। मेरे खतों को ठीक करने के लिए नाई ने अपनी आंखें मेरे गरदन पर टिका रखी थी। उसने एक हाथ से मेरे सिर को जोर से पकड रखा था ताकि मैं अपना सिर हिलाकर उसके काम में बाधा न पहुंचा सकूं। सिर झुकाए हुए मैं सैलून में रखे टीवी की आवाज भर सुन पा रहा था। न्यूज चैनल पर एलियंस के बारे में कोई प्रोग्राम आ रहा था। एंकर ने चीखते हुए कहा- घर से निकलने से पहले एक बार आसमान की ओर जरूर देख लें। वह शायद आसमान से उतरने वाले किसी खतरे के बारे में आगाह कर रहा था। एंकर की इस आवाज के साथ ही मेरे कानों को एक दूसरी आवाज भी सुनाई दी- साले चूतिया बनाते हैं। यह मेरे नाई की आवाज थी। मैंने कहा जब चूतिया बनाते हैं तो चैनल देखते ही जरूर क्यों हो मैंने पूछा। उसने कहा रशीद भाई के अलावा कोई नहीं देखता। रशीद भाई दुकान के मालिक होंगे। इसलिए वह जो देखेंगे बेचारों को देखना पडता होगा। आज अखबार में पढा प्रोफ़ेसर यशपाल कह रहे थे कि न्यूज चैनलों पर दूसरी दुनिया और एलियंस आदि के बारे में बेसिर पैर की बातें दिखाई जाती हैं मैंने तो इस तरह के डिसकशन में जाना ही छोड दिया है। यशपाल अगर लेमैन की भाषा में बोलते तो ठीक वही कह रहे होते जो उस नाई ने कहा था। जाहिर है अब न्यूज चैनलों के प्रोग्राम के बारे में नाई और वैज्ञानिक की राय एक जैसी है। कुछ दिन बाद रशीद भाई जैसे लोग भी इन चमत्कारिक कहानियों से उब ही जाएंगे। शायद तब यह मजाक बंद हो लेकिन तबतकमीडिया की छवि पर पर जो बटटा लग चुका होगा उसकी भरपाई कैसे होगी।

1 comment:

janmorcha said...

प्रिय ब्रजेश,
'बनाते हैं चैनल वाले'लेख पढ़ा, अच्‍छा लिखा है। आप समाज के प्रति अपनी जिम्‍मेदारी निभाने में कामयाब हों, इसी शुभकामनाओं के साथ आपका-
जितेंद्र बच्‍चन
मुख्‍य उप संपादक, दैनिक जागरण