Tuesday, December 23, 2008

बुश बुरा नहीं मानते

जब मुंतजिर जैदी ने इराकी जनता और वहां की विधवाओं की ओर से बुश पर तान कर जूते फेंके तो वह क्षण एक इतिहास में बदल गया । जब कभी भी खुद को महामहिम समझने वाले किसी ताकतवर देश का मदांध शासक किसी कमजोर देश को अपने पैरों तले कुचलने की कोशिश करेगा उसे मुंतजिर के जूते सपने में जरुर नजर आएंगे । बुश पर जूता फेंकने की घटना पर चर्चित कवि राधेश्याम तिवारी ने अपनी कविता पढ़ने के लिए दी। यह कविता आप भी पढ़िए








लोग बेवजह शंकित हैं
कि टाटा चाय की तरह
बुश बहुत कड़क हैं
न जाने वे किस बात का बुरा मान जाएं
जबकि बुश किसी बात का बुरा नहीं मानते
इराकी पत्रकार
मंतदार अल जैदी के
जूते मारने का
बुरा नहीं माना उन्होंने
जैदी के दो जूते उन पर पड़े
एक इराकी जनता की ओर से
दूसरा वहां की विधवाओं की ओर से
अपनी ओर से तो अभी
बाकी ही है जूता मारना
बुश ने फिर भी
मुस्कराते हुए कहा-
इसे मैं बुरा नहीं मानता
यह स्वतंत्र समाज का संकेत है

बुश का समाज
बहुत पहले से स्वतंत्र हो चुका है
जिसका इस्तेमाल कर उनके देश ने
दुनियाभर में बम बरसाए हैं
और बेशुमार खून बहाया
अगर कोई उनकी स्वतंत्रता को बुरा
बुरा मानता है तो
इसमें बुश का क्या दोष
लेकिन बुरा मानकर भी
वे जैदी का क्या कर लेंगे
समय जो इतिहास में
दर्ज हो चुका है
उसे वे सद्दाम की तरह
फांसी पर तो चढ़ा नहीं सकते
और न ही फिलिस्तीनी जनता की तरह
उसे इतिहास के पन्नों से
दर-ब-दर कर सकते हैं
कुछ भी कर के वे उस समय को
कैसे भूल सकते हैं
जिस समय उन्हें जूते पड़े थे
बहुत करेंगे तो जैदी का
कीमा बनाकर
अपने प्यारे कुत्तों में बांट देंगे
मंदी के इस दौर में
उन्हें इसकी जरुरत भी है
लेकिन डर है कि इससे तो जैदी
और जिंदा हो जाएगा
और लोग समझने लगेंगे कि
बुश सचमुच बुरा मान गए
जिससे जैदी अपने मकसद में
कामयाब हो जाएगा

बुश यह जानते हैं
कि आतंक का विरोध करके मरना
आतंक सहकर जिंदा रहने से
अधिक कीमती है
इसलिए जूते मारने का वे
कभी बुरा नहीं मानेंगे

Friday, December 19, 2008

सृजन को बंदूक चाहिए

सृजन मेरे भांजे का नाम है । गोरखपुर में रहता है । उम्र लगभग तीन साल । ठीक से बोलना नहीं आता । लेकिन जब भी फोन पर बात होती है मुझसे कुछ न कुछ फरमाइश जरुर करता है । कभी कपड़े खिलौने चश्मा घड़ी आदि । पिछले कुछ दिनों से उसके मांगपत्र में एक नई चीज जुड़ गई है--बंदूक । जब पहली बार उसने बंदूक की मांग की तो मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया । लेकिन जब दूसरी-तीसरी बार उसने बंदूक का नाम लिया तो मैंने पूछ ही लिया कि वह बंदूक का क्या करेगा । उसने कहा आतंकवादियों को मारुंगा । कहीं बाबा रामदेव को पढ़ा कहते हैं तिल-तिल कर मरने से अच्छा है आतंकवादियों से लड़कर मरा जाए । क्या बच्चा क्या बाबा सभी के दिलों पर मुंबई ने के आतंकी हमलों ने गहरा असर डाला है । टीवी पर हमले की सीधी कार्रवाई देखने वाले अधिकतर लोगों की यही इच्छा है । हम सभी बहुत उद्वेलित हैं कुछ कर गुजरना चाहते हैं समस्या को जड़ से उखाड़ फेंकने पर आमादा हैं पर मन में कुछ सवाल उठते हैं यह पहली बार नहीं है जब पूरे देश को शर्मसार होना पड़ा है। इससे पहले कंधार विमान अपहरण संसद पर हमला कारगिल जैसे कई कांड हो चुके हैं। सीरियल बम ब्लास्ट तो जैसे रोज की घटनाए हैं । पर यह हमारी स्मृति इतनी ‌क्षीण हो गई है कि कुछ ही दिनों के बाद हम हर घटना को भूल जाते हैं। दूसरी बात कि हर घटना पर हम इतने उन्मादी क्यों होने लगे हैं । कोई टिप्पणी पोस्टर कोई हमला राष्ट्रीय उन्माद में क्यों बदल जाता है । क्यों नेताओं की सियासत का शिकार होकर कोई बच्चा पिस्तौल लेकर बेस्ट की बस पर चढ़ जाता है । बहरहाल मुंबई हमलों के बाद अमिताभ बच्चन सिरहाने बंदूक रखकर सोए और सृजन को बंदूक की जरुरत है । क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है । क्या हम अपनी सीमाओं सेना पुलिस और गुप्तचर व्यवस्था को इतना चाक चौबंद नहीं कर सकते कि कोई परिंदा भी पर न मार सके । क्या हम विदेश नीति और कूट नीति ककहरा भी नहीं जानते । कहने को तो हम परमाणु संपन्न देश हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर हमारी आवाज अनसुनी क्यों है । क्या हम अपनी सरकार से कोई आशा करें । शायद यह मूर्खता ही होगी। अफसोस देश की गद्दी पर ऐसा प्रधानमंत्री है जिसके पास जनता की ताकत ही नहीं । एक ऐसा व्यक्ति जिसने झूठ बोल कर पूर्वोत्तर से राज्स सभा की सदस्यता ली हो और किसी की दया पर प्रधानमंत्री बन बैठा हो उसकी आवाज में वो गरिमा और ताकत नहीं आ सकती जो एक महान जनतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री में होनी चाहिए । प्रधानमंत्री को तो छोड़िए आज किस नेता में वह ओज आत्मबल नैतिकता और ईमानदारी है। शायद इसीलिए ताज के बाद हमने नेताओ को गालियां देना शुरु कर दिया । पर गालियां देने से क्या होगा जाति धर्म क्षेत्र के नाम पर हमी तो चुनते हैं उन्हे । यह हमारी ही तो सोच है कि जो कानून को धता बताकर हमारा गलत सही काम न करा सके वह नेता कैसा । हमने ही तो संसद और विधान सभाओं में अपराधियों को बिठा रखा है । गलती उनकी भी है जो कंधे उचकाकर बोल देते हैं कि राजनीति गंदी है । हम भूल जाते हैं कि दुनिया के अधिकतर मसलों का हल राजनीति से ही संभव है ।
बहरहाल सृजन को आतंकवादियों से लड़ने के लिए बंदूक चाहिए । क्या वाकई कोई दूसरा रास्ता नहीं है ।

Thursday, December 11, 2008

बेरोजगार लड़के

वे मिल जाएंगे कहीं भी
झुंड में बैठे हुए
किसी चाय की दुकान पर
या कहीं भी उस जगह
जहां बैठा जा सके देर तक
अल्हड़ हवाओं की तरह
वे हंसते हैं बेफिक्र हंसी
बोलते-बोलते अकसर
देखने लगते है शून्य में
बुदबुदाते हैं
हवाओं में टांकते हैं गालियां
और हाथ में चाय की गिलास थामे
बांचते रहते हैं
गली की लड़की से लेकर
लादेन तक की कुंडली
उनके पास
सूचना और अफवाहों का
अथाह भंडार है
वे अफवाहों की सचाई में यकीन करते हैं
सच सी लगें अफवाहें
इसलिए
उनमें कुछ अफवाहें और भी जोड़ देते हैं
उन्हें कभी भी आवाज लगाई जा सकती है
मंगवाई जा सकती है बाजार से सब्जी
वे जमा करा सकते हैं पानी-बिजली का बिल
मरीज को पहुंचाना हो अस्पताल
तो उठाया जा सकता है उन्हें आधी रात में
वे अच्छे बच्चे हैं
किसी काम के लिए ना नहीं करते
ना करने पर कहा जा सकता है उन्हें
बेकार और आवारा