Sunday, August 24, 2008
बारह साल के साकी
मैं शराब नहीं पीता लेकिन शराब को जहर भी नहीं मानता। पीने-पिलाने वालों की सोहबत मुझे अच्छी लगती है। मेरे साथ बैठता हूं। सलाद वगैरह बनाने में मदद करता हूं और कोल्ड डि्क का गिलास हाथों में लेकर उनका साथ भी देता हूं। लेकिन इसके बावजूद मेरा मानना है कि यह ऐसी चीज भी नहीं है कि इसके बिना जिंदगी अधूरी हो। खासतौर पर बच्चों को तो इससे दूर ही रखा जाना चाहिए। लेकिन बस से लखनउ जाते समय समय मैंने साहिबाबाद बस अडडे में एक बच्चे को बीयर बेचते हुए भी देखा था। वैशाली में जहां मैं रहता हूं मैंने बच्चों को ही साकी की भूमिका निभाते हुए देखा है। शाम ढलते ही लोग माडल मधुशाला के किनारे अपनी गाडियां खडी कर देते हैं। दस बारह साल के बच्चे उनकी गाडियों को घेर लेते है। फिर एसी गाडियों में बैठे-बैठे ही बच्चों से मनपसंद डिंक की बोतल मंगाई जाती है। कार में मधुर संगीत के साथ शराब का आनंद उठाने के बाद लोग बच्चों को टिप और खाली बोतलें थमा कर घर वापस लौट जाते हैं। आप राहत महसूस कर सकते हैं ये हमारे घरों के बच्चे नहीं होते। ये वे बच्चे हैं जिनहें स्ट्रीट चाइल्ड कह कर हम ध्यान ही नहीं देते। पर यह राहत की बात नहीं। आप माने न माने ये बच्चे भी हमारे ही समाज का हिस्सा हैं। अगर हम इन बच्चों को स्कूल नहीं भेज सकते इनके खाने-पीने का इंतजाम नहीं कर सकते तो इनके हाथों में बोतल थमाने का हक हमें किसने दिया है।
Monday, August 11, 2008
बनाते हैं चैनल वाले
कुछ दिन हुए सैलून में कटिंग करा रहा था। मेरे खतों को ठीक करने के लिए नाई ने अपनी आंखें मेरे गरदन पर टिका रखी थी। उसने एक हाथ से मेरे सिर को जोर से पकड रखा था ताकि मैं अपना सिर हिलाकर उसके काम में बाधा न पहुंचा सकूं। सिर झुकाए हुए मैं सैलून में रखे टीवी की आवाज भर सुन पा रहा था। न्यूज चैनल पर एलियंस के बारे में कोई प्रोग्राम आ रहा था। एंकर ने चीखते हुए कहा- घर से निकलने से पहले एक बार आसमान की ओर जरूर देख लें। वह शायद आसमान से उतरने वाले किसी खतरे के बारे में आगाह कर रहा था। एंकर की इस आवाज के साथ ही मेरे कानों को एक दूसरी आवाज भी सुनाई दी- साले चूतिया बनाते हैं। यह मेरे नाई की आवाज थी। मैंने कहा जब चूतिया बनाते हैं तो चैनल देखते ही जरूर क्यों हो मैंने पूछा। उसने कहा रशीद भाई के अलावा कोई नहीं देखता। रशीद भाई दुकान के मालिक होंगे। इसलिए वह जो देखेंगे बेचारों को देखना पडता होगा। आज अखबार में पढा प्रोफ़ेसर यशपाल कह रहे थे कि न्यूज चैनलों पर दूसरी दुनिया और एलियंस आदि के बारे में बेसिर पैर की बातें दिखाई जाती हैं मैंने तो इस तरह के डिसकशन में जाना ही छोड दिया है। यशपाल अगर लेमैन की भाषा में बोलते तो ठीक वही कह रहे होते जो उस नाई ने कहा था। जाहिर है अब न्यूज चैनलों के प्रोग्राम के बारे में नाई और वैज्ञानिक की राय एक जैसी है। कुछ दिन बाद रशीद भाई जैसे लोग भी इन चमत्कारिक कहानियों से उब ही जाएंगे। शायद तब यह मजाक बंद हो लेकिन तबतकमीडिया की छवि पर पर जो बटटा लग चुका होगा उसकी भरपाई कैसे होगी।
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