Sunday, March 23, 2008

बहरों को सुनाने के लिए...

अत्याचारी ब्रिटिश सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा बम के साथ जो परचा फेंका गया था वह ब्रिटिश सरकार द्वारा किए जा रहे राष्ट्रीय दमन और अपमान की स्थिति का बयान तो करता ही है इन देशभक्तों की क्रान्ति विषयक अवधारणा के बारे में संकेत देता है। प्रस्तुत है पार्लियामेंट में फेंके गए परचे का हिंदी यह हिंदी अनुवाद

हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना
सूचना
बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊंची आवाज की जरूरत होती है प्रसिद्ध फ़्रांसीसी अराजकतावादी शहीद वैलियां के यह अमर शब्द हमारे काम के औचित्य के साक्षी हैं।
पिछले दस सालों में ब्रिटिश सरकार ने शासन सुधार के नाम पर इस देश का जो अपमान किया है उसकी कहानी दोहराने की आवशयकता नहीं है और न ही हिंदुस्तानी पार्लियामेंट पुकारे जाने वाली इस सभा ने भारतीय राष्ट्र के सिर पर पत्थर फेंककर उसका जो अपमान किया है उसके उदाहरणों को याद दिलाने की जरूरत है। यह सर्व विदित और स्पष्ट है। आज फिर जब लोग साइमन कमीशन से कुछ सुधारों के टुकडों की आशा में आंखें फैलाए हैं और इन टुकडों के लोभ में आपस में झगड रहे हैं विदेशी सरकार सार्वजनिक सुर‌‌‌क्षा विधेयक और औ‍द्यौगिक विवाद विधेयक के रूप में अपने दमन को और भी कडा करने की कोशिश कर रही है। इसके साथ ही आने वाले अधिवेशन में अखबारों द्वारा राजद्रोह रोकने का कानून जनता पर कसने की भी धमकी दी जा रही है। सार्वजनिक काम करने वाले मजदूर नेताओं की अंधाधुंध गिरफतारियां यह स्पष्ट कर देती हैं कि सरकार किस रवैये पर चल रही है। राष्ट्रीय दमन और अपमान की इस उत्तेजनापूर्ण परिस्थिति में अपने उत्तरदायित्व को गंभीरता से महसूस कर समाजवादी प्रजातंत्र संघ ने अपनी सेना को यह कदम उठाने की आज्ञा दी है। इस काम का प्रयोजन है कि कानून का यह प्रहसन समाप्त कर दिया जाए। विदेशी शोषक नौकरशाही जो चाहे करे परंतु उसकी वैधानिकता की नकाब फाड देना आवशयक है।
जनता के प्रतिनिधियों से हमारा अनुरोध है कि वे इस पार्लियामेंट के पाखंड को छोडकर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लौट जाएं और जनता को विदेशी दमन और शोषण के खिलाफ क्रान्ति के लिए तैयार करें। हम विदेशी सरकार को यह बतला देना चाहते हैं कि हम सार्वजनिक सुर‌‌‌क्षा विधेयक और औ‍द्यौगिक विवाद विधेयक के दमनकारी कानूनों और लाला लाजपत राय की हत्या के विरोध में देश की जनता की ओर से यह कदम उठा रहे हैं।
हम मनुष्य के जीवन को पवित्र समझते हैं हम ऐसे उज्ज्वल भविष्य में विश्वास रखते हैं जिसमें हर व्यक्ति को पूरी शांति और स्वतंत्रता का अवसर मिल सके। हम इंसान का खून बहाने की अपनी विवशता पर दुखी हैं। परंतु क्रान्ति द्वारा सबको समान स्वतंत्रता देने और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त करने के लिए क्रान्ति में कुछ न कुछ रक्तपात जरूरी है।
इंकलाब जिंदाबाद हस्ताक्षर बलराज
कमांडर इन चीफ

साभारःराजकमल प्रकाशन
( ८ अप्रैल सन १९२९ को असेंबली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा फेंके गए परचे का हिंदी यह हिंदी अनुवाद राजकमल पेपर बैक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक भगत सिंह और उनके साथियों के दस्तावेज से ली गयी है।)

1 comment:

Sandeep Singh said...

बड़े भाई फेंका गया चिठ्ठा मैंने लपक लिया गाली खाने के लिए...क्योंकि यकीन आपको होगा नहीं बहुत बार फोन करने को सोचा लेकिन बस जैसा आपने लिखा है....सोचता रह गया (शर्मिंदा हूं, आशा है इस गलती को माफी मिलेगी) वैसे भी आपने ही कहां जहमत उठाई, उठाई होती तो क्या बात न होती...(ये रही इलाहाबादी ढिठाई)पहचान कौन नहीं कहूंगा...sanjhsavere.blogspot.com पर मिल जो जाऊंगा।
mob- 09930325565
चायघर के लिए बधाई।