Friday, December 19, 2008

सृजन को बंदूक चाहिए

सृजन मेरे भांजे का नाम है । गोरखपुर में रहता है । उम्र लगभग तीन साल । ठीक से बोलना नहीं आता । लेकिन जब भी फोन पर बात होती है मुझसे कुछ न कुछ फरमाइश जरुर करता है । कभी कपड़े खिलौने चश्मा घड़ी आदि । पिछले कुछ दिनों से उसके मांगपत्र में एक नई चीज जुड़ गई है--बंदूक । जब पहली बार उसने बंदूक की मांग की तो मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया । लेकिन जब दूसरी-तीसरी बार उसने बंदूक का नाम लिया तो मैंने पूछ ही लिया कि वह बंदूक का क्या करेगा । उसने कहा आतंकवादियों को मारुंगा । कहीं बाबा रामदेव को पढ़ा कहते हैं तिल-तिल कर मरने से अच्छा है आतंकवादियों से लड़कर मरा जाए । क्या बच्चा क्या बाबा सभी के दिलों पर मुंबई ने के आतंकी हमलों ने गहरा असर डाला है । टीवी पर हमले की सीधी कार्रवाई देखने वाले अधिकतर लोगों की यही इच्छा है । हम सभी बहुत उद्वेलित हैं कुछ कर गुजरना चाहते हैं समस्या को जड़ से उखाड़ फेंकने पर आमादा हैं पर मन में कुछ सवाल उठते हैं यह पहली बार नहीं है जब पूरे देश को शर्मसार होना पड़ा है। इससे पहले कंधार विमान अपहरण संसद पर हमला कारगिल जैसे कई कांड हो चुके हैं। सीरियल बम ब्लास्ट तो जैसे रोज की घटनाए हैं । पर यह हमारी स्मृति इतनी ‌क्षीण हो गई है कि कुछ ही दिनों के बाद हम हर घटना को भूल जाते हैं। दूसरी बात कि हर घटना पर हम इतने उन्मादी क्यों होने लगे हैं । कोई टिप्पणी पोस्टर कोई हमला राष्ट्रीय उन्माद में क्यों बदल जाता है । क्यों नेताओं की सियासत का शिकार होकर कोई बच्चा पिस्तौल लेकर बेस्ट की बस पर चढ़ जाता है । बहरहाल मुंबई हमलों के बाद अमिताभ बच्चन सिरहाने बंदूक रखकर सोए और सृजन को बंदूक की जरुरत है । क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है । क्या हम अपनी सीमाओं सेना पुलिस और गुप्तचर व्यवस्था को इतना चाक चौबंद नहीं कर सकते कि कोई परिंदा भी पर न मार सके । क्या हम विदेश नीति और कूट नीति ककहरा भी नहीं जानते । कहने को तो हम परमाणु संपन्न देश हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर हमारी आवाज अनसुनी क्यों है । क्या हम अपनी सरकार से कोई आशा करें । शायद यह मूर्खता ही होगी। अफसोस देश की गद्दी पर ऐसा प्रधानमंत्री है जिसके पास जनता की ताकत ही नहीं । एक ऐसा व्यक्ति जिसने झूठ बोल कर पूर्वोत्तर से राज्स सभा की सदस्यता ली हो और किसी की दया पर प्रधानमंत्री बन बैठा हो उसकी आवाज में वो गरिमा और ताकत नहीं आ सकती जो एक महान जनतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री में होनी चाहिए । प्रधानमंत्री को तो छोड़िए आज किस नेता में वह ओज आत्मबल नैतिकता और ईमानदारी है। शायद इसीलिए ताज के बाद हमने नेताओ को गालियां देना शुरु कर दिया । पर गालियां देने से क्या होगा जाति धर्म क्षेत्र के नाम पर हमी तो चुनते हैं उन्हे । यह हमारी ही तो सोच है कि जो कानून को धता बताकर हमारा गलत सही काम न करा सके वह नेता कैसा । हमने ही तो संसद और विधान सभाओं में अपराधियों को बिठा रखा है । गलती उनकी भी है जो कंधे उचकाकर बोल देते हैं कि राजनीति गंदी है । हम भूल जाते हैं कि दुनिया के अधिकतर मसलों का हल राजनीति से ही संभव है ।
बहरहाल सृजन को आतंकवादियों से लड़ने के लिए बंदूक चाहिए । क्या वाकई कोई दूसरा रास्ता नहीं है ।

No comments: