दरिया साहब भी कबीर की तरह ही मुसलमान के घर के घर पले- बढे। उनके अनुयायी दरिया पंथी कहलाते हैं। ये सफ़ेद रंग का वस्त्र तहमत जैसा पहनते हैं। कंधे पर सफ़ेद चादर और हाथ में लोटा रखते हैं। बौद्धों की तरह ये भी सिर का मुंडन कराये रहते हैं। मुसलमान जिस तरह पांच बार नमाज पढ़ते हैं, उसी तरह ये भी दिन में पांच बार कोरनिश करते हैं।
दरिया साहब की पहली पुस्तक दरिया सागर है। उन्हों ने बीस ग्रंथों की रचना की। कबीर की ही तरह उन्हों ने भी हिन्दू और मुसलमान दोनो के अन्धविश्वास और कर्मकांड पर कटाक्ष किया है।
दरिया साहब की लिखी दो उलट्बासियाँ पेश हैं-
गदहा मुख में वेणु बजाए, करहा पढ़ते गीता।
भैंस पदुमनी नाचन लागी, यह कौतुक होय बीता।।
मियां ने एक मुर्गी पाली, पाव, शीश, नहीं ठोरी,
अलह नाम लेवे ना देती, ठोर चलावे चोरी ।।
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1 comment:
best of luck.
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