Friday, November 30, 2007

संघ के सौ आनन

यह किस आत्मा की आवाज़ है? कल तक जो एक हाथ में तलवारें और दूसरे हाथ में धर्म ध्वजा लेकर विधर्मियों को ललकार रहे थे, वे अचानक इतने दरिया दिल कैसे हो गए? तरुण विजय की किताब 'सैफरन सर्ज' के विमोचन के मौक़े पर सर संघचालक सुदर्शन जी ने पैगम्बर हजरत मोहम्मद को न केवल अरब एकता का सूत्रधार बताया बल्कि उन्हें शांति का मसीहा कह कर उनकी तारीफ भी की। तो क्या जो लोग यह मानते थे कि इस्लाम का प्रचार एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कुरान लेकर किया गया, उन्होने अपने विचार बदल दिए? या मुस्लिम तुष्टीकरण का राग अलापते-अलापते खुद तुष्टीकरण पर उतर आये?
जो आदमी जिन्ना को सेकुलर कहने वाले रथयात्री से उसका आसन छीन ले, आख़िर वह वैचारिक विचलन का शिकार कैसे हो गया? संघ में हाय -हाय मची है और लोग चकित हैं कि कहीं ये कोई चमत्कार तो नहीं?
धोखा है ...धोखा है। मुझे याद है वो दिन , जब हमारे शहर में जहाँ मेरी याद में कभी दंगे नहीं हुए, अयोध्या में मंदिर ढहने के बाद अचानक मेरा दोस्त शबीहुल हसन दुश्मन बन गया था। जब जलती हुई झोपडियों से चीखों की आवाज़ फिजाओं में गूँज रही थी, तब इनकी अंतर्रात्मा का अट्टहास सुना था आपने? बनारस की वह सुबह भी याद है, जब एक प्रचारक ने वहशी हुलस के साथ मुझसे कहा था, गुजरात में जमकर काटे जा रहे हैं ...वे। तब एक मुखौटे ने कहा था , मोदी ने राज धर्म का पालन नहीं किया ... फिर सो गयी थी उसकी अंतरात्मा। ये वो हैं , जो मिथक को विज्ञान और विज्ञान को मिथक में बदल सकते हैं। राम का रोज़गार करने वाले सत्ता के लिए कोई भी मुखौटा ओढ़ सकते हैं। संघ के सौ आनन हैं, कुछ भी बोल सकते हैं.

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